Tuesday, 20 January 2015

16 संस्कारो का वर्णन

वैदिक कर्मकाण्ड के सोलह संस्कार
वैदिक कर्मकाण्ड के अनुसार निम्न सोलह संस्कार होते हैं:
1. गर्भाधान संस्कारः उत्तम सन्तान की प्राप्ति के लिये प्रथम
संस्कार।
2. पुंसवन संस्कारः गर्भस्थ शिशु के बौद्धि एवं मानसिक विकास
हेतु गर्भाधान के पश्चात दूसरे या तीसरे महीने किया जाने
वाला द्वितीय संस्कार।
3. सीमन्तोन्नयन संस्कारः माता को प्रसन्नचित्त रखने के लिये,
ताकि गर्भस्थ शिशु सौभाग्य सम्पन्न हो पाये, गर्भाधान के
पश्चात् आठवें माह में किया जाने वाला तृतीय संस्कार।
4. जातकर्म संस्कारः नवजात शिशु के बुद्धिमान, बलवान, स्वस्थ
एवं दीर्घजीवी होने की कामना हेतु किया जाने वाला चतुर्थ
संस्कार।
5. नामकरण संस्कारः नवजात शिशु को उचित नामप्रदान करने
हेतु जन्म के ग्यारह दिन पश्चात् किया जाने वाला पंचम संस्कार।
6. निष्क्रमण संस्कारः शिशु के दीर्घकाल तक धर्म और
मर्यादा की रक्षा करते हुए इस लोक का भोग करने
की कामना के लिये जन्म के तीन माह पश्चात् चौथे माह में
किया जाने वला षष्ठम संस्कार।
7. अन्नप्राशन संस्कारः शिशु को माता के दूध के साथ अन्न
को भोजन के रूप में प्रदानकिया जाने वाला जन्म केपश्चात् छठवें
माह में किया जाने वालासप्तम संस्कार।
8. चूड़ाकर्म (मुण्डन) संस्कारः शिशु के बौद्धिक, मानसिक एवं
शारीरिक विकास की कामना से जन्म के पश्चात् पहले, तीसरे
अथवा पाँचवे वर्ष में किया जाने वाला अष्टम संस्कार।
9. विद्यारम्भ संस्कारः जातक को उत्तमोत्तम विद्या प्रदान के
की कामना से किया जाने वाला नवम संस्कार।
10. कर्णवेध संस्कारः जातक की शारीरिक व्याधियों से
रक्षा की कामना से किया जाने वाला दशम संस्कार।
11. यज्ञोपवीत (उपनयन) संस्कारः जातक की दीर्घायु
की कामना से किया जाने वाला एकादश संस्कार।
12. वेदारम्भ संस्कारः जातक के ज्ञानवर्धन की कामना से
किया जाने वाला द्वादश संस्कार।
13. केशान्त संस्कारः गुरुकुल से विदा लेने के पूर्व किया जाने
वाला त्रयोदश संस्कार।
14. समावर्तन संस्कारः गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने की कामना से
किया जाने वाला चतुर्दश संस्कार।
15. पाणिग्रहण संस्कारःपति-पत् नी को परिणय-सूत्र में बाँधने
वाला पंचदश संस्कार।
16. अन्त्येष्टि संस्कारः मृत्योपरान्त किया जाने वाला षष्ठदश
संस्कार।

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